
कहते हैं कि जो चमकते हैं, वो हमेशा आसान रास्तों से नहीं गुज़रते है. “टीवी स्क्रीन पर हंसाने वाले चेहरे के पीछे कई बार ऐसे आंसू छुपे होते हैं, जिनका अंदाज़ा दर्शक भी नहीं लगा पाते” है. आज की कहानी है एक ऐसे कलाकार कि है जिसे आपने हंसते हुए देखा है. ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस हंसी के पीछे एक ऐसा दौर भी था, जब ये कलाकार 18 महीनों तक बेरोज़गार रहा?”पॉपुलर टीवी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ने देशभर के करोड़ों लोगों को हँसाया, जो आज भी भारतीय टेलीविज़न का सबसे सफल कॉमेडी शो माना जाता है। “

18 महीने का लंबा समय होता है. ना कोई काम, ना ऑडिशन में सिलेक्शन, ना कोई भरोसा कि अगला प्रोजेक्ट मिलेगा या नहीं. लेकिन उसने हार नहीं मानी और खुद पर विश्वास रखा. “उस कलाकार ने खुद कहा – ‘मैं रोज़ खुद से लड़ता था. सोचता था कि क्या मैं सही हूं? लेकिन फिर याद आता था. मैं एक एक्टर हूं और मुझे सिर्फ एक मौका चाहिए और फिर आया वो दिन जब एक बार फिर मौका मिला, और आज वह फिर स्क्रीन पर है, अपने फैंस के दिलों में है. ये कहानी सिर्फ उस एक्टर की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो कभी न कभी हार मानने की कगार पर खड़ा होता है.हम बात कर रहे हैं शैलेश लोढ़ा की, जिन्होंने शो में ‘तारक मेहता’ का किरदार निभाया था. शो में उनका व्यक्तित्व समझदार और गंभीर अदाज़ वाला था. लेकिन रियल लाइफ में उन्होंने एक ऐसा संघर्ष देखा, जिसकी कल्पना शायद ही कोई नहीं देखा है.

शैलेश लोढ़ा ने अपनी शर्तों और आत्मसम्मान के चलते शो को अलविदा कह दिया. उन्हें उम्मीद थी कि उनके टैलेंट और पहचान के चलते उन्हें जल्दी ही अच्छे ऑफर्स मिलेंगे. लेकिन शो से बाहर आने के बाद लगातार 18 महीनों तक उन्हें कोई काम नहीं मिला. एक इंटरव्यू में शैलेश लोढ़ा ने बताया,”18 महीने तक मुझे कोई काम नहीं मिला। वो वक्त मेरे लिए बहुत भारी था. कई बार खुद से सवाल किया, क्या मैंने सही किया? लेकिन मैं अपने फैसले पर अडिग रहा. वो कलाकार जो हर दिन दूसरों को मुस्कान देता था, अंदर ही अंदर खुद अपने भविष्य को लेकर चिंता में था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

18 महीने के इस कठिन दौर के बाद आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई. उन्हें एक नई शुरुआत मिली और दर्शकों ने एक बार फिर उन्हें सराहा. उनका यह सफर सिर्फ एक एक्टर का नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति का प्रतीक है जो अपने सपनों के लिए संघर्ष करता है, बिना थके और बिना झुके.
शैलेश लोढ़ा की यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में संघर्ष आएंगे, लेकिन अगर हम अपने सिद्धांतों और आत्मविश्वास के साथ डटे रहें, तो सफलता एक न एक दिन ज़रूर मिलती है. यह सिर्फ एक टीवी एक्टर की नहीं, बल्कि हर उस आम इंसान की कहानी है जो अपने सपनों के लिए कुछ खोकर आगे बढ़ता है.