
फिल्म ‘धरम करम’ का गाना ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’, लोगों के दिलों पर आज पर राज करता हुआ दिखाई देता है। ये उन सदाबहार गानों में से एक है, जिसने हम सभी को किसी न किसी हालत में हिम्मत दी है। लेकिन क्या आप इस गीत के पीछे की कहानी के बारे में जानते हैं? चलिए हम आपको बताते हैं इस गाने से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में यहां।’एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल… दूजे के होठों पर देकर अपने गीत, कोई निशानी छोड़ फिर दुनिया से डोल…’, मजरूह सुल्तानपुरी साहब का लिखा, मुकेश की आवाज में गाया और आरडी बर्मन के संगीत से सजा यह गाना जेल की काल कोठरी में 1949 में लिखा था। उस दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने मशहूर उर्दू कवि, गीतकार को जेल में बंद कर दिया था। नए-नए आजाद भारत में, यह वह वक्त था जब स्वतंत्र खयालात को सरकार गुलामी की जंजीरों में जकड़कर रखना चाहती थी।

मजरूह साहब 1950 और 1960 के दशक में भारतीय सिनेमाई संगीत की रूह माने जाते थे। वह प्रगतिशील लेखक आंदोलन में एक महत्वपूर्ण कड़ी के तौर पर साबित हुए थे।अपने छह दशक के करियर में उन्होंने कई संगीत निर्देशकों के साथ काम किया। साल 1965 में फिल्म दोस्ती के गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर ने बेस्ट गीतकार के तौर पर नवाजा था। साल 1993 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड (लाइफटाइम अचीवमेंट) से भारत सरकार ने सम्मानित किया। लेकिन ये भी कम दिलचस्प नहीं है कि कभी इसी भारत सरकर ने उन्हें जेल भी भेजा था।

पिता ने दिलवाई थी अंग्रेजी की तालीम
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में पैदा हुए मजरूह सुल्तानपुरी के पिता असरार उल हसन खान एक मुस्लिम राजपूत थे। पिता 1919-1920 में पुलिस विभाग में तैनात थे। उस दौर में असरार उल हसन खान ने अपने बेटे को अंग्रेजी सिखाई थी, जोकि उस वक्त बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। साल 1946 में फिल्म ‘शाहजहां’, 1947 में ‘डोली’ और 1949 में आई ‘अंदाज’ से मजरूह साहब का नाम प्रसिद्ध गीतकारों में शामिल होने लगा था। उनके खयालात वामपंथी झुकाव वाले थे। इसीलिए वो सत्ता में आई सरकार के खिलाफ लिखते थे।
नेहरू सरकार ने मजरूह सुल्तानपुरी, बलराज साहनी को भेजा जेल
साल 1949 में बलराज साहनी को सरकार ने जेल में डाल दिया गया था। वहीं, मजरूह साहब ने भी सत्ता के खिलाफ कविताएं लिखी थीं, बलराज साहनी के साथ उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। दरअसल, 1948 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दूसरे सम्मलेन के बाद कम्युनिस्टों ने भारत सरकार के खिलाफ क्रांति करने का फैसला किया था। इसके बाद राष्ट्रव्यापी गिरफ्तारी हुई।
‘हिटलर’ से की थी जवाहर लाल नेहरू की तुलना
मजरूह साहब ने जेल के अंदर कई और कविताएं लिखीं। जब उनसे माफी मांगने के लिए कहा गया, तो उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसे में उन्हें 1951 में दो साल जेल की सजा सुनाई गई। एक कविता में तो उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू की तुलना हिटलर से कर डाली थी। ऐसे में जेल से निकलने के लिए उन्हें मदद की सख्त जरूरत थी। उस जमाने में राज कपूर फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे एक्टर-फिल्ममेकर थे, जो नेकदिली और सबकी मदद करने के लिए जाने जाते थे। राज कपूर को खबर लगी तो वह मजरूह साहब से मिलने जेल पहुंचे।

जब मदद के लिए आगे आएं राज कपूर
जेल में मजरूह साहब जैसे धुरंधर लेखक का हाल देख राज कपूर का दिल भर आया। उन्होंने तत्काल उनसे कहा, ‘मैं आपकी मदद करना चाहता हूं।’ इस पर उसूलों के पक्के मजरूह सुल्तानपुरी ने कहा, ‘आप मेरी बस इतनी मदद कर दें कि मुझे कोई काम दिला दें।’ राज कपूर साहब ने झट से कहा, ‘मुझे एक गाना चाहिए, आप एक गाना लिखिए।’ राज कूपर जैसा गाना चाहते थे उन्होंने वैसा ही लिखा। अपने गाने के जरिए उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार को नसीहत भी दी थी। खैर, मजरूह साहब ने यह गाना 1949 में जेल में लिखा था। फिर राज कपूर साहब ने 1975 में रिलीज अपनी फिल्म ‘धरम करम’ में इसका इस्तेमाल किया। फिल्म से ज्यादा इस सुपरहिट गाने को लोगों ने पसंद करना शुरू कर दिया। राज कपूर ने उस दौर में मजरूह सुल्तानपुरी साहब को इस गाने के लिए 1000 रुपये दिए थे। यह तब बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन सब जानते थे राज कपूर ने ऐसा क्यों किया।