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रेखा न होतीं तो नहीं बनती ‘उमराव जान’: पर्दे के पीछे की अनसुनी कहानी

Rekha pic

बॉलीवुड की क्लासिक फिल्मों में शुमार ‘उमराव जान’ (1981) को आज भी इसकी खूबसूरती, शायरी, संगीत और सबसे बढ़कर रेखा की अदाकारी के लिए याद किया जाता है। मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि ये फिल्म बनने से पहले ही लगभग बंद हो चुकी थी। अगर रेखा ने एक अहम फैसला न लिया होता, तो शायद ये फिल्म कभी बनती ही नहीं… और हम एक ऐतिहासिक किरदार को रेखा के रूप में देखने से वंचित रह जाते।

जब बंद होने वाली थी ‘उमराव जान’

इस फिल्म के निर्देशक मुज़फ़्फ़र अली एक समय इतने परेशान हो चुके थे कि उन्होंने फिल्म को बीच में ही बंद करने का निर्णय ले लिया था। शूटिंग के दौरान बजट की कमी, टेक्निकल दिक्कतें, और क्रू में मतभेद जैसे कई कारणों से फिल्म अधर में लटक गई थी। एक सीन में तो यह भी हुआ कि लोकेशन पर कोई शूटिंग के लिए तैयार नहीं था। कलाकार हताश थे और निर्देशक टूट चुके थे।

लेकिन तब आईं रेखा…

रेखा उस समय एक स्थापित अभिनेत्री थीं, लेकिन उन्होंने कभी ‘स्टार’ वाला रवैया नहीं अपनाया। जब उन्होंने देखा कि डायरेक्टर मुज़फ़्फ़र अली फिल्म छोड़ने का मन बना चुके हैं, तो रेखा ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने न सिर्फ शूटिंग में सहयोग किया, बल्कि अपने स्तर पर आर्थिक मदद की पेशकश भी की।

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रेखा नहीं, तो ‘उमराव जान’ नहीं

रेखा ने फिल्म में उमराव जान अदा का किरदार सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि उसमें जान फूंक दी। उनकी नजाकत, उर्दू अदायगी, और कथक नृत्य की तैयारी। सबकुछ इतना जीवंत था कि वो किरदार अमर हो गया। रेखा ने खुद महीनों उर्दू सीखी, कथक सीखा, और नवाबी तहज़ीब को आत्मसात किया। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

“इन आंखों की मस्ती…” और एक अमर अभिनय

अगर रेखा का समर्पण न होता, तो आज हम “इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं…” या “दिल चीज़ क्या है…” जैसे नग़में कभी न सुन पाते। रेखा ने ना सिर्फ एक फिल्म को बचाया, बल्कि भारतीय सिनेमा को एक कालजयी रत्न दिया।

अंत में…

‘उमराव जान’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह एक मिसाल है। कि जब एक कलाकार अपनी कला के लिए हर चीज़ दांव पर लगा दे, तो चमत्कार हो सकते हैं। रेखा ने अगर उस दिन हार मान ली होती, तो शायद बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत कविताओं में से एक अधूरी रह जाती।

shruti kumari

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